सोमवार, 27 जनवरी 2014

दरकती संवेदना... (लघु-कथा)






आज चिलचिलाती धूप में बाहर निकलना पड़ा, काम ही इतना जरूरी था; वरना तो अक्सर इस समय मैं कूलर के सामने बैठकर किताब पढ़ना ही ज्यादा पसन्द करती हूँ। घूमते-२ दो घण्टे होने को आए थे; जल्दी-२ में छाता लाना भी भूल गई थी। मुझे धूप में चलने की आदत नहीं, सिर दर्द से फ़टा जा रहा था और गला भी सूख रहा था। अचानक सामने मौसमी के जूस का एक ठेला दिखा, जिस पर मैले-कुचैले कपड़े पहने एक लड़का खड़ा था, जिसके हाथ भी गन्दे थे; वैसे भी साफ़ तो कुछ भी नहीं था उस ठेले पर। पर जब प्यास से गला सूख रहा हो, तो दिल ये सब सोचने की इजाजत नहीं देता। मैंने अपने कदम उस ठेले की तरफ़ बढ़ा दिए।

‘ये बड़ा गिलास कितने का है?’

’३० रूपए।’

भले ही दुकान पर इतना ही गिलास ५०/- का मिले, पर ठेले पर वो मँहगा ही लगता है।

‘सुबह से कोई नहीं मिला लूटने को। २५ का दोगे, तो लूँगी।’

‘ठीक है, मैडम जी...!’ वो बोला। शायद वो भी धूप में खड़ा-२ थक गया था और उसकी बोहनी भी नहीं हुई थी शायद सुबह से।

वो जल्दी-२ मौसमी छीलने लगा। तभी मेरा ध्यान गिलास की तरफ़ गया, ‘जी’ अजीब सा हो आया। इतना गन्दा, उस पर पता नहीं कितने लोगों ने इसे जूठा किया होगा। अचानक मेरा ध्यान अपने बैग में रखी पानी की खाली बोतल की तरफ़ गया। वो जूस निकाल चुका था और देने के लिए गिलास उठाने लगा।

‘सुनो...!  गिलास रहने दो, इस बोतल में भर दो।’

‘पर मैडम जी, नापूँगा कैसे?’

दो घूँट ज्यादा भी नहीं दे सकते। (मैं मन ही मन सोच रही थी)

वो कुछ देर खड़ा रहा, फ़िर अचानक आगे बढ़कर दो मौसमी और छीलने लगा। फ़िर मेरी तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए बोला;

“ज्यादा भले ही चला जाए, पर कम नहीं जाना चाहिए।”

     
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सोमवार, 6 जनवरी 2014

सिर्फ़ सम्मान मत दीजिए..... अपनाइये भी!







पिछले कुछ दिनों में मैसेज, टिप्पणी और फ़ोन के द्वारा लोगों के ‘सुन्दरता’ विषय पर अनेक विचारों से परिचित होने का अवसर प्राप्त हुआ। सभी लोगों का यही कहना है कि हम सभी को बराबर सम्मान देते हैं, पर सुन्दरता की तारीफ़ भी कर देते हैं। मैं उनसे सिर्फ़ यही कहना चाहती हूँ कि आप उन्हें सिर्फ़ सम्मान ना दें, बल्कि अपनाएँ भी। सम्मान के हकदार तो वे हैं ही, साथ पाने के भी हैं और समाज में उसी हक से उठने-बैठने के भी। समाज में जिस तरह सबकी जरूरतों का ध्यान रखा जाता है, उन लोगों की सहूलियत का भी ध्यान रखा जाना चाहिए, जो किसी ना किसी तरह की विकलांगता से पीड़ित हैं।

वैसे जब आप कहते हैं कि समाज में सुन्दर/असुन्दर सभी को समान स्थान व सम्मान प्राप्त है, तो फ़िर समाज में लड़की देखने-दिखाने का रिवाज क्यों प्रचलन में है? क्या देखने जाते हैं आप लड़की में? मेरी एक परिचित का कहना था कि हम ज्यादा नखरे नहीं दिखाते। बस लड़की देखने-सुनने में ठीक हो और हाथ-पैर सलामत हों। क्यों जब कोई किसी विकलांग से शादी करता है, तो उसे महानता के सिंहासन पर बैठा दिया जाता है; सिर्फ़ इसलिए कि आप ऐसा नहीं कर सकते थे? अभी कुछ दिन पहले राजस्थान में किसी विकलांग से शादी करने पर ११,०००/- देने की योजना थी; इससे ज्यादा अपमान की बात तो सोची भी नहीं जा सकती।

वैसे ये अपमान और भेदभाव सिर्फ़ शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग लोगों के साथ ही नहीं होता, बल्कि उनके साथ भी होता है, जो सुन्दर नहीं हैं या जिनका रंग गोरा नहीं है। ये भेदभाव और अपमान केवल अनेक सामाजिक समस्याओं को ही जन्म नहीं देता, बल्कि कई अपराधों का भी कारण बनता है। एक लड़की ने अपनी बहन की हत्या सिर्फ़ इसलिए कर दी, क्योंकि उसके ब्यॉयफ़्रेंड ने उसे छोड़कर उसकी बहन को अपना लिया, जिसकी वजह सिर्फ़ सुन्दरता थी। एक दस साल के लड़के ने अपने २ साल छोटे भाई को सिर्फ़ इसलिए छत से धक्का दे दिया, क्योंकि उसके सुन्दर होने की वजह से पड़ौसी, रिश्तेदार और यहाँ तक कि माता-पिता का प्यार भी उसके भाई को ही अधिक मिलता था। ये सिर्फ़ गिने-चुने किस्से हैं, अगर लिखने बैठो तो पन्ने के पन्ने भर जाएँगे, पर किस्से खत्म नहीं होंगे; और हम पाएँगे कि उन सब की जड़ में सिर्फ़ एक ही वजह थी ‘सुन्दरता’।

असुन्दर लोग जिन्हें समाज अक्सर कुरूप, भद्दे और बेडौल शब्दों से नवाजता है, सिर्फ़ चेहरे से ही नहीं होते, बल्कि शारीरिक भी होते हैं, जिनका कोई अंग ठीक से काम नहीं करता और कुछ लोग किसी दुर्घटना या बीमारी की वजह से अक्षम हो जाते हैं। तो जब मैं ‘सुन्दरता’ की बात करती हूँ, तो इसे विस्तृत परिप्रेक्ष्य में देखिए, चेहरे पे अटक कर मत रह जाइये। असल में विरोध सुन्दरता का नहीं, इससे उत्पन्न हुई समस्याओं का है, जिन्हें रोकने के लिए ‘सुन्दरता’ की सराहना और पूजन को रोकना होगा। मैं तो चाहती हूँ कि जो सुन्दर और शारीरिक रूप से समर्थ हैं, इस हवन में पहली आहुति वो ही डालें, ना कि इसे अपना या दूसरों का अपमान समझकर विरोध दर्ज करते रहें। आप सभी के सहयोग से ही ये समाज एक खुशहाल बगिया की तरह महकेगा।

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