वो रोता बहुत था और
अक्सर ही बरबस उन्हें रोकने की कोशिश के बावजूद आँसू उसकी आँखों में छलक ही आते थे।
एक दिन रोते-२ परिमल, पीहू के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थाम कर पूँछने लगा,
‘जब तुम मेरे साथ हो,
तो मुझे इतना रोना क्यों आता है?’
जवाब में पीहू उसके
चेहरे को पास ला के अपने लबों से उन छोटी-२ बूँदों को इस तरह उठाती, जैसे कोई बासंती
सुबह में बिखरी ओस की बूँदों को इस तरह सहेज रहा हो, मानो सारी दुनिया ही अपनी मुट्ठी
में भर लेने का एहसास हो।
ये देखकर परिमल आँखों
ही आँखों में उसके ऐसा करने की वजह पूँछता, तो पीहू शरारत भरी मुस्कान के साथ जवाब
देती कि
‘चख रही हूँ, मीठे हैं
या खारे; क्योंकि खुशी के आँसू मीठे होते हैं और ग़म के नमकीन।’
आँखों ही आँखों में
एक और सवाल, ‘कैसे हैं?’
फ़िर हँसते हुए परिमल
खुद ही जवाब दे देता, ‘मीठे ही होंगे, आखिर तुम्हारे रहते मैं दुखी रह सकता हूँ भला?’
फ़िर अचानक ही पीहू की
गोद में लेटकर कहने लगता, ‘तुम्हारी गोद में लेटकर रोने से सुकून आता है। सीने में
जब्त दु:ख, जो इतने सालों में जहर बन चुका है और अन्दर ही अन्दर रिसता रहता है, उसे
पिघला कर इन आँखों के रास्ते बाहर निकाल देना चाहता हूँ।’
पीहू प्यार से उसकी
आँखों को चूम लेती है.....................।
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